हे योगिराज प्रभु रामलाल हम तेरा ध्यान लगाते हैं। --- टेक
हाथ जोड़कर प्रेम सहित चरणों में शीश झुकाते हैं।।
तुम ही स्वामी तुम ही बंधु तुम ही पिता महतारी हो।
तुम ही मेरे राम लखन तुम ही कृष्ण मुरारी हो।।
जीवन रूपी नैया के तुम ही प्रभु रखवाले हो।
पार करो या भंवर में छोड़ो तुम ही खेवनहारे हो।।
देख देखकर रूप मनोहर मन में खुशी मनाते हैं। --- १
आँखों की ज्योति तुम ही तुम ही दिन का उजियारा हो।
पूर्णिमा की चमक है जो तुम ही चन्दा प्यारा हो।।
बादल तुम ही बिजली तुम ही तुम ही गगन का तारा हो।
एक मात्र स्वामी मेरे जीवन का तुम्ही सहारा हो।।
सार तुम्ही हो सारे जग का तेरा ही गुण गाते हैं। --- २
रातों मे तुम रात चाँदनी सूरज का प्रकाश तुम्ही।
जलों में तुम हो गंगा जल और पर्वत में कैलाश तुम्हीं।।
देह तुम्ही हो प्राण तुम्ही हो नस नाड़ी और श्वास तुम्ही।
तुम्ही जग उपजावन हारे प्रलय काल में नाश तुम्ही।।
आते हैं जो शरण तुम्हारी मुक्ति का फल पाते हैं। --- ३
जिसने लिया सहारा तेरा जीवन सफल बनाया है।
हुए भंवर से पार वही जिसने तेरा गुण गाया है।।
शरण में आने पर दुष्टों को भी तुम ने अपनाया है।
कहे दास श्री प्रभु ने उनका बेड़ा पार लगाया है।।
शुभ कर्मों से जीव शरण प्रभु रामलाल की आते हैं। --- ४