इस योग्य हम कहाँ है. गुरूवर तुम्हे रिझाये
फिर भी मना रहे है शायद तू मान जाये !
जब से जन्म लिया है विषयों ने हमको घेरा
छल और कपट ने डाला इस भोले मन पे डेरा
सद्बुद्धि को हमने हरदम रखा दबाये
निश्चय ही हम पतित है लोभी है स्वार्थी है
तेरा ध्यान जब लगाये माया पुकारती है सुख भोगने की इच्छा कभी तृप्त ना हो पाये जग में जहा भी देखा, बस एक ही चलन है एक दूसरे के सुख में, खुद को बड़ी जलन है कर्मो का लेखा-जोखा कोई समझ न पाये जब कुछ ना कर सकें तो तेरी शरण में आरो अपराध मानते हैं ले लेगें सब सजाएँ अब ज्ञान हमको दे दो कुछ और हम ना चाहे