प्रभु के भजन मन सुरति लगा 55
10 मुक्ती के दाता महाप्रभु रामलाल योग खोगेश्वर प्रगटे है अतिप्यारा जग आ
नाम प्रभू का सुमिरत भव से होइ निस्तारा • सुमिरि सुमिरि नर उत्तर हिं पारा 12 मूरतिये प्रभु की मन में बिठा.
योगी जिनका ध्यान लगाते 13
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14 मुस्तति सुर सुनि निब उठ गति मनवांछित फल प्रमु 15 महिमा उन्ही की राहा जग गा
भेता में राम बने द्वापर सुरारी, युग युग बदलते रुक अमुना से प्रगरे 24 रूम शिवधारी जटाजूट प्रभु प्रगटे आ
18 योग का सूरज जग बन आये
10 चन्द्र रूप गुरदेव सुहाये सिध्द ज्योति जग में प्रगटाये 20 महिमा उन्हीं की रहा जगगा.....
। इति।