प्रनल प्रेभ के पाली पड़ कर प्रभुको नियम बदलते देरणा
अपना मान रहे ना रहे
10
11 पर भक्त का मानल टलते देखा
जिसकी केवल कृपा दृष्टि से में विश्व को पलते देखा
सकल 13
उसको गोकुल मैं माखून पर
14
सो सौ बार मचलते देखा
जिसकी वक्र संकुटि के भय से
15
16 सागर तप्त उबदलते देखा
उसको मा यशुदा के मय से 17
10 अश्रु बिन्दु हग दहलते देखा
प्रबल, प्रेम के पाले पड़कर
प्रभु को नियम बदलते देखा