चेत मन मूरख अन तू-चैत प्रभू को काहे बिसारा है भोले हैं भोलेबाबा से छल मन कपट न भाता दुखी देख अपने बालक को अमृत छान बरसाता दया का अद्भुत सागर है
• हिमालय जैसा है गंभीर सरस गंगा की बारा है, नेत मन १- पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण जहें। लाग भूमि पसारा बरसाता कण कण में है प्रभु बिमल प्रेस रसधारा दुखी जन जिसको भाता है
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जनक सम हरता है संताय दुखी जन प्रभुको प्यारा है चेत मन- जो जन शरण गये सद्गुरु की दुख दरिद्रता नासी 2-
• धन वैभव सुत दिये प्रभूने लगन ने दीन्ही काँसी भक्त जन का रखनारा है
दौड़ कर निश्चय जताते हैं जभी मतों ने पुकारा है
चेत मन बुरा न कोई कर सकता है जिसके प्रभु रखवारे शंकर सम भक्तन रक्षा को कर त्रिशूल है धारे -3-
देख यमराज डराता है
तीन लोकों का स्वामी है नाही गुरुदेव हमारा है चेत...