हे पतित उद्धारण भवनिज तारण नौका पार लगा देना।
पतितों से पतित पातकी हूँ मुझको भी नाथ निभा लेना।। --- टेक
विषयों के द्वन्द्व में फंसकर के ये नैया चक्कर खाती है।
केवट है नादान नाँव अधवर में डूबी जाती है।।
बस आकर गुरुदेव यहाँ अब लङ्गर आप गिरा देना --- १
इस काम क्रोध मद मत्सर ने अपनी माया फैलाई है।
हर तरफ़ से है किया आक्रमण सारी शक्ति दिखलायी है।।
श्री रामलाल योगीश योग साधन से हमें बचा लेना --- २
त्रयताप त्रिगुण त्रासक त्रिशूल कर उठा कर के।
भक्तों पर करके कृपा गुप्त योग दरशा कर के।।
अष्टांग योग नाथों के नाथ सचराचर में फैला देना --- ३
हम मस्त तेरी शरणागत में पाकर के प्रेम का प्याला।
गुरु भक्ति में सानन्द रहे गले पड़ी रुण्डन की माला।।
हे दयासिन्धु दया करके अब मोक्ष मार्ग दरशा देना --- ४