फागुन के दिन चौर से डोरी खेल मना निन करताल पसामज बाजे अनहद की हंकार बिन सुर राग छत्तीसों गाये रोम रोम कै कार शील संतोष की कैंसर रोरी प्रेम प्रीत पिचकारी उड़त गुलाल लाल भयौ अंबर दोखत ज्योति अपार घर के सन पट खोलि दिये हैं सद्गुरु दमा निहार मोरा घट में फाग मध्यो हैं बार बार बलिहार