एक कोर कृपा को दिखादो इधर
हे श्यामसुन्दर हे योगेश्वर
हम दीन होम तुम्हें ध्याते है पर झलक न तेरी पाते हैं फिर द्विप के कहाँ बैठे गुरुवर है श्यामसुन्दर तेरी देन अंध को दूर करे अध्दा विवेक और प्रेम भरे जरा प्रेम सुधारर्सदे भर कर हे श्यामसुन्दर अति आकर्षण तेरी प्रतिमा में भूलत है सुधि बुधि क्षणा क्षण में है प्रणव ज्ञान तेरी एक नजर है श्यामसुन्दर तेरी वाणी पावन करुणामयी संकेत करत है तू है
वही निरखूँ तुमको रुचि रुाचे भीतर हे श्याम सुन्दर.. हो राम तुम्हीं और कृष्ण तुम्हीं शिवशंकर भोलेनाथ तुम्हीं बलिहारी चरन कमल गुरुबर है श्याम सुन्दर है हृदय बड़ी अभिलाष यही तेरी सूरत उत्तरे मन में
चित चोर मोहन आओ बनकर सही है श्याम सुन्दर है योगेश्वर