दर्शन दो प्रभु रामलाल हिमगिरि के वासी रे। --- टेक
योगेश्वर-सिद्धेश्वर प्रभुजी घट-घट वासी रे।।
आदि-अनादि तुम्हें बतलाते।
शुद्ध ब्रह्म का ज्ञान कराते।।
अजर-अमर नेपाल के वासी तुम अविनाशी रे। --- १
निराकार प्रभु ब्रह्म कहाते।
धर साकार रूप जग आते।।
युग युग में प्रभु रूप है धारा दुष्ट विनाशी रे। --- २
कृपा दृष्टि प्रभु जब तुम करते।
रीते घट योगामृत भरते।।
भव से करते पार उसे तुम शिव कैलाशी रे। --- ३
जिस घट वास तेरा प्रभु होवे।
आवागमन न उसका होवे।।
तेरे धाम को वह नर पाता आनन्दराशी रे। --- ४
झलक हमें प्रभुजी दिखला दो।
हृदय दीप में ज्योत जगा दो।।
करो कृपा अब तो सिद्धेश्वर अन्तरवासी रे। --- ५