काया का मत कर अभिमान यह पौधा है पानी का। --- टेक
यह मिट्टी का वरक्ष लगा हैं जिसको देख कर तू सजा है।
मन अपने में तू रिज्ञा है पता न इस जिन्दगानी का।। --- १
जगत से एक दिन तू उठेगा तार तेरा तो जब टटेगा।
चले हवा तो यह फूटेगा बुलबुला है यह पानी का।। --- २
भग्नि मिट्टी का मेल हुआ है पवन जल का तेल हुआं है।
आकाश का खेल हुआ है पिंजरा बना थोथा पानी का।। --- ३
इस पिंजरे में नौ दरवाजे अन्दर बज रहे अनहद वाजे।
सब करते हैं आजे करो गौर इस वानी का।। --- ४
बिना परों का पंछी रहता ना कभी यह दुख सुख सहता।
एक जगह ना आसन रखता करम करे ना दानी का।। --- ५
पांच नाग पच्चीस नागनि इसमें गावे रोज रागनी।
नाच दिलावे है यह जोगनी रंग देखो इस इन्द्रानी का।। --- ६
पाँच भूतन का रंग देखलो करके इनको नंग देख लो।
गुरू चन्द्र मोहन का सत्संग देखलो अमी रानन्द की रस बानी।। --- ७