सोच समझ ले इस जीवन का तार और के हाथों में। --- टेक
क्यों करता है मेरा यहां पर नहीं हैं कुछ भी तेरा।
उस बिन तो है घोर अन्धेरा पार और के हाथों में।। --- १
तू किसके ऊपर रीझ रहा है पापों में क्यों भीग रहा हें।
ये तोमिट्टी का बीज रहा है थार और के हाथों में।। --- २
जिसके ऊपर तू गर्भ सोच समझ के चाले हैं।
इस माया का पार न पावे भार और के हाथों में।। --- ३
अपना ना समझे कुछ बंदें सब ही बने काल के फन्दे।
विना गुरु के फिरते अन्धे प्यार और के हाथों में।। --- ४
तेरे बस कों बात नहीं है डोरी तो प्रभु के हाथ है।
रहता वह तो तेरे साथ है अख्तयार और के हाथ में।। --- ५
सब तज भज ले हरि नाम को तजदे बन्दे बुरे काम को।
पहुँच जाये लोक धाम को साकार और के हाथों में पर।। --- ६
गरु चन्द्र मोहन के गाने गाले अमीरा नन्द तू घीर बंधाले।
गरु चरण की गंगा नहांले निराकार के हाथों में।। --- ७