जीव फंसा कम द्वारे जब अपने को देख रहा। --- टेक
संजिल मंजिल पर चल रहा हैं कम अपने में वह रुल रहा है।
देख देख हाथ मलरा है ना दीखे हैं आप कहाँ।। --- १
समय तो भाई नाहीं टले है कर्मों का यह भोग मिले है।
फिर तो अपनी ना चले हैं फिर क्यों हाथों को फेक रहा।। --- २
चलता चलता हांपत्ता है कह्टीं तप जल में तापता है।
देख देख कर कांपता है है वह मेरा कुटुम्ब कहाँ।। --- ३
कहीं अग्नि में कहीं जल में कहीं पड़ा नरक के मल में।
फिर तो भा रही पुरी अकल में इधर उधर को ताक रहा।। --- ४
फिरता भूखा प्यासा जब धर के यम ने ताँसा।
दिया डाल नरक का फाँसा फिर बुरी तरह से झाँक रहा।। --- ५
गुरु चन्द्र मोहन कह संमझा के अमी रानन्द तो कह गा के।
बन्दे इस दुनिया में आके जिन्दगी रुला खाक रहा।। --- ६