प्रसु ने वचन उचारा ऐसा बचन उचारा। --- टेक
तुम करते क्या वात हो क्यों करते हो उपघात हो।
धारी ना कोई साथ हो क्या मतलव हैं थारा।। --- १
हमको भी बात बताना सत का वचन फरमाना।
क्या थारे मन को माना क्यों करते हो जिन्दगी खवारा।। --- २
क्यों अपघात करो हो बिना भाई क्यों सरो हो।
किस व्याधी से हो डरो हो क्यों करो दुख अति भारा।। --- ३
सब देना मतलब खोल क्यो रहे अधवर में डोल।
हिरदे में उठ रही होल।। --- ४
काया पे छाई जरदी टप ठप आंसू पड़ती।
क्या छूट गई थारी धरती क्या कर गया कृटुम्ब किनारा।। --- ५
क्या चीज थारी गयी खोई जो रहे खड़े हो रोई।
आँसू से मुखड़ा धोई समसा दो बजन करारा।। --- ६
मैं सब रोग कांट्रंगा विपत थारी को बाँट्रगा।
रंगत अमी रानन्द की छाटूंगा सर गुरु चन्द्र मोहन लिए धारा।। --- ७