सेरे राम लाल से पीर काट दई सब यम की जंजीर। --- टेक
विपत सेरी सब छुटवादी प्याली जब अमृत की प्यादी।
मेरी मिट गई सब व्याधी मेरा निर्मल हुआ शरीर।। --- १
आवा गमन छुट गई सारी मुझे नहीं हुई कुछ भारी।
राम रती थी पापन नारी मेरे धुल गये पाप शरीर।। --- २
सेज शशुमना मैं सोती हूँ ना अब जीवन को खोती हे।
पाप सफी अपने धोती हूँ बांध सत गुरू पर धीर।। --- ३
जहां रहे सत गुरू का पहरा वहां अमृत बहता है गहरा।
भक्ति का जब आवे लहरा मिट जा सब करम लकीर।। --- ४
शब्द योग का प्रभु भर गये हाथ सर चन्द्रमोहन के धर गये।
लिख भजन कविता अमी रानन्द कर गये पिया गुरुचरण का नीर।। --- ५