सबद मेरे रूम रूम में छाया रूम रूम में छाया। --- टेक
सत गुरू मैं सुमरन करती जोड़ हॉथ चरणों में घरती।
बीनती बार बार ही करती जब से दशन पाया।। --- १
दर्शन करके आनन्द हो गई रामलाल जब आये योगी।
काट गये मेरे करम के भोगी गये कर निमल काया।। --- २
सत गुरू की रहे शरण में सत के तो में रह शरण में।
अपने तो मैं रह परण में मन को ना फिर भरमाया।। --- ३
आनन्द आता हमें भजन में मन तो होता प्रभु के मगन में।
रहती नित उसकी लगन में जब तक दर्शन ना पाया।। --- ४
रामरति पापन नित चाहती गुण प्रभ्नु रामलाल के गाती।
अमीरानन्द के मन को भाती जब चन्द्र मोहन ने गाया।। --- ५