मेरा छुटा जगत से बासा मेरा छुटा जगत से बासा। --- टेक
मैंहरिनाम गाती हूँ सत की गंगा में नहाती हैं।
नकहीं आती जाती हूँ भजती हैं स्वासी स्वासा।। --- १
मेरा हुआ नरक से छुटकारा मैं नहाती त्रीवनी धारा।
मुझे वचन गुरू का प्यारा हुआ जगत से मन उदासा।। --- २
मैं ध्यानी में नित चलती मेरी वयारी चमन में खिलती।
मेरी व्याधा सारी टलती मेरा हुआ स्वर्ग से वासा।। --- ३
मेरा ध्यान नहीं टूटेगा नहीं प्रभ्नु हमसे रूठेगा।
अब कम नहीं फूटेगा मेरा हुआ पाप का नाश।। --- ४
कहे राम रति ना थोड़ो रंगत अमीरानन्द ने जोडी।
सत प्रसत की वात नचोड़ी रहे गुरू चरण का प्यासा।। --- ५