मैं मगन रहें हृदय मैं मगन रू हृदय मैं। --- टेक
मैं दर्शन प्रभु के पाती मैं और नहीं कुछ चाहती।
मुझे याद हरि की आती जो रहता नित परदे में।। --- १
कोई और दूजा न जातू और किसी को ना मात।
सिकल प्रभ्॒ की पहचातू रहे प्रभु श्रध्या में।। --- २
जहां प्र की जोत जगे है मेरा ध्यान वहीं लगे है।
वहां व्याघा सभी भगे है जा मिलती है गरदे में।। --- ३
मुझे लगे प्रेम उमाया जब दर्शन सुझे दिखाया।
मुझको एक हीरा पाया ना रही यम के करने में।। --- ४
मैं राम रति गुण गाती प्रभु राम राम लाल चाहती।
गई अमोरांनन्द की उतपाती रहें गुरु चन्द्रमोहन हृदय में।। --- ५