सितारा शब्द का सोहम का अपने आप गाता है।
समाजा आन मेरे में वह अपने आप बुलाता है।। --- टेक
अन्दर में पुकारे है तुझे कर तू उसकां ध्यान ले।
जोवायदा करके आया है कर बचनों का तू पालले।।
खो कम छोड़े के वक्त अपना सम्भाल ले।
अब भी तू मान समय अपना टाल ले।।
जितना है तुझे प्यारे तेरी ना समझ आता है। --- १
आवाज देता है तुझे अमृत की भरी।
सुन ले तू लगा प्रेम की झड़ी।।
लगा ले पार तू नय्या जो अदभर में पड़ी।
अब भी होजा पार तो है किस्मत है बड़ी।।
जगाता आप ही तुझको पड़ा तू क्या सोता है। --- २
सदा ना बजेगा यह सितारा।
टूट जायेगा हो जायेगा न्यारा।।
तपेगा फिर तू गरभ में जा दुबारा।
छोड़ करके बुरे कर्म को ले ले प्रभु का सहारा।।
मिलेगा धाम प्रभु का यह तुझको जिताता है। --- ३
टूट जायेंगे तार सारे मेल फिर ना खांवेगा।
अपने अपने स्थान पर सब ही समावेगा।।
पड़ा पिजरा स्वासों का खाली पावेगा।
गाने वाले सुसांफिर तो रवाना हो जावेगा।।
रहेंगे देखते भी जिसे तू अपना चाहता है। --- ४
करे इरादा दूर का ना पता है कल का।
क्या करेगा फिर तू ना भरोसा है पल का।।
हवा चले तो फूट जा ब्रुदा है यह जल का।
हड्डी और मास का वना है पिजरा सन का।।
भरोसा मत करे इसका सितारा छोड़ जाता है। --- ५
छोड़ जायेंगा मुसाफिर ना कोई फिर गायेगा।
पकड़ लें यम के दूत जब कोई नहीं छुड़ायेगा।।
वचन गुरू का मान ले नहीं फिर पछतायेगा।
गुरू चन्द्र मोहन का प्रेम से जो तू गानों गायेगा।।
अमीरानन्द भी गा कर तार सोहम पर लाता है। --- ६