वाहर तुझको ना मिलने को जिस की तू आश करें।
अन्दर बड कर देख जरा तेरे अन्दर बास करे।। --- टेक
कंकर कांटे क्यों गाहता है क्यों अग्नि में ताप रहा।
ब्रफ पड़े पव॑त पर जावे क्यों जाड़े पे कांप रहा।।
ब्रत करे तन की सुखावे ना मन पर तू वास करे। --- १
स्वांस स्वांस पर तुझे पुकारे तू तो सुनता नहीं जरा।
वाहरे की माया में भटके गुन अन्दर का गुन्ता नहीं जरा।।
मोह माया में भरम रहा हैं यह तो हर दम नाश करे। --- २
चमक रही जोती प्रभ्नु की तेरे अन्दर जगती हैं।
बिना दिये विन बात ल्रित के अपने आप चमकती है।।
रहे प्रकाश जगत सारे में अन्धकार का नाश करे। --- ३
जो बाहर है सो भीतर है जग सारे का रखवाला।
बिना गुरू के ना दीखेगा पड़ा रहो हृदय काला।।
सत गुरु की माया तो बड़ी हैं वह अपना प्रकाश करे। --- ४
शक्ति का संचार होवेगा तबहों तु देख पावेगा।
सभी लोक अन्दर दीखेगे सबहीं भरम मिट जावेगा।।
ज्ञान उजाला हो अन्दर सोह पर जो स्वांस करे। --- ५
भरम छोड़दे हृदय का सुन ले सत गुरु कीं वानी।
शब्द सुन लेगा बिन कानों बिन जिभा बोले वानी।।
बिना हाथ पर के वह चलता है बिना पवन के स्वांस करे। --- ६
शरण गुरू की ले ले बन्दे क्यों जींवन को खोता है।
जितना हशना इच्छा होगी उतना बीज तू बोता है।।
अमीरा नन्द कहें पद पावे सत गुरू पर जो विश्वास करे। --- ७