क्या अनोखी शान है गुरुदेव के दरबार में। --- टेक
खुले हाथों है दया का दान इस दरबार में।।
तर रहे कितने पतित शठ ज्ञान शुन्य सुधर रहे।
भर रहे शुचि शान्ति से गुरु नाम के आधार में।। --- १
जिसने देखा है वही बस जानता इस बात को।
कह नहीं सकते कि क्या जादू है इनके प्यार में।। --- २
कीर्ति मति बुद्धि वैभव जिसको जो कुछ है मिला।
गुरु कृपा से ही सुलभ सब कुछ हुआ संसार में।। --- ३
प्रेममय भगवान प्रियतम हृदय के अतिशय सरल।
रीझ जाते हैं पतित पावन तनिक उद्गार में।। --- ४