आओ रे भाई सतगुरु के गुण गावे।
सतगुरु सत्य का मार्ग दिखाकर भव से पार लगावे।। --- टेक
ध्रुव भक्त जब घर से निकले नारद गुरु बनाया था।
गुण आधार किया तप उसने प्रभु का दर्शन पाया था।।
लक्ष्य हुआ जब पूरा उसका लौट के घर फिर आया था।
गुरु कृपा से काँच खोज ले हीरा उसने पाया था।।
ऐसी है सतगुरु की माया आगे और बतावे। --- १
वसिष्ठ गुरु थे श्री राम के राम को योग सिखाते थे।
भवसागर से तारण कारण योग सभी समझाते थे।।
गुरुदेव को संग में लेकर जनकपुरी को जाते थे।
आज्ञा पाकर गुरुदेव की धनुष तोड़ दिखलाते थे।।
बिना गुरु के कुछ नहीं होता खाली गाल बजावे। --- २
मनुष्य शरीर मिला है क्योंकर कुछ तो जरा विचारो रे।
बीत गयी सो बीत गयी अब आगे की तुम धारो रे।।
छोड़ बुराई औरों की तुम अपने को सुधारो रे।
करुणाधार जो सतगुरु मिलजा फौरन तन मन वारो रे।।
ऐसे गुरु का पता कठिन है फिर भी तुम्हें बतावे। --- ३
सहारनपुर से बैठ रेल में बाद गाजिया आता है।
रेल मेल में बैठ मेल से हाथरस आ जाता है।।
हाथरस से पेसिन्जर में मितावली स्टेशन आता है।
स्टेशन से मील नहीं जो सिद्धाश्रम कहलाता है।।
यही आश्रम गुरुदेव का सिद्धश्वर कहलावे। --- ४
जिला आगरा ग्राम सँवाई आश्रम बहुत पुराना है।
श्री चन्द्रमोहन गुरुदेव हमारे जिनका वहाँ ठिकाना है।।
योगीराज जगत से न्यारे जिज्ञासु ने जाना है।
बात पते की तुम्हें बतादी आगे-आगे तुमको जाना।।
जन्म जन्म के पुन्य कर्म से दर्शन कोई कोई पावे। --- ५