प्रमुजी जय होवे तुम्हारी गीजो स्वाति दूद डारी
तुम सम नह कोई दीन दयाला अधमन हित हो देंत उजाला ग्रेड मल्लाह पर कृपा जो कोनी घट में लखो सुरारी
चारों वेद और ज्ञान तुम्हीं हो घट-घट वासी ध्येय तुम्हीं हो मध्य-परीक्षा तुम्हें जो सुमरों श्रेणी प्रथम उतारी
भव-भय हारन नाम तिहारो भजर्ताह कारज होवत सारो बादूसिह विषपान कियो जब जौवन दियो पछारी
सच्चदानन्द हो रूप अनेका अखिल ब्रह्म हो देत विवेका एक समय हो कई जगहों पर दर्शन तुम पारी
भक्तन हित तम नर तन घधारे पतित जतन को शीघ्र उभारे सिद्ध गुफा को बना तपोशुमि पक्क्ति है पारो