हरि बोल मेरी रसभना घड़ी-घड़ी व्यथें बिताती है क्यों जीवन मुख मंदिर में पड़ी-पड़ी
नित्य निकाल गोविन्द नाम की रइवाँस-इवाँस से लड़ी-लड़ी
जाग उठे तेरी धुन सुन कर इस काया की कड़ी-कड़ो
बरसा दें प्रभु प्रेम सुधा रस बिन्दु-बिन्दु से झड़ी-झड़ी