काटे मन अटक रहा मझधार प्रभ चरणों में करले प्यार
योग योगीश्वर धाये सवाँई सिद्ध गुफा है तब दशयी भणष्ट सिद्धि नव निद्धि के दाता शंकर के अवतार
प्रभु रामलाल नाम है प्यारा सुमिरत होवे कारज सारा योगि महात्मा शरण पड़े हैं प्रभ सच्चा दरबार
योगामृत का पान कराते मन एकाग्र करना सिखलाते सरल साधनों से प्रभुजी हैं दोष हटावें हजार
हंदय बोस करते भक्तों के रूप दूसरा है ईश्वर के शौक्तपात करके सुख संपत्ति देते अपरम्पार
प्रेम सुघा रस नित्त्य पिलाई ध्यावत रूप है देते जनाई चलते राह किया है प्रभ ने लाखों का उद्धार
मानव-जीवन तू है पाया मोह माया काहे भरमाया डिन सत्युरु नहि पावे 'ओम' तू करले खुब विचार