ठर्ज - रतुम्हीं हो माता घ्ता तुम्ही हो
हे मेरे सत्गुरु हे मेरे स्वामो तुम्हें नमाभि तुम्हें नमामि
तुम्हीं हो शंकर श्रीकृष्ण प्यारे तुम्टीं हो दुखियों के एक सहार पत्ति जनों को तुमने उभारे
है शवितशाली वाणी तुम्हारी बने हैं कारज जब-जब उचारी करते हो वितरण वह शक्ति प्यारी
तुम्हीं दुबल को सबल बनाते पूटे घड़ों में टाँके लगाते तुम्द्दीं हो गृहस्थों को योग सिखाते
जताते तुम हो वह ज्योति न्यारो समाई जिसमें है सृष्टि सारी चुकाते लिश्चस ही सबकी बारो
मैं मीन हैं तो तुम हो समुन्दर गौरव मुझे है तुम्हारे बल पर हटातें तुम हो जन्मों के चक्कर