अनोखा सन्त मतवाला चन्द्रमोहन हमारा है योगौश्वर नाथ त्रिलोकी कण-कण में समाया है
हैं जीवन लक्ष्य केवल दो स्वस्थ सबको बनाता है मन हो लीन भगवत में सरल साधन सिखाता है
शरण में जो कोई आता है शक्तिपात पाया है चले मांगें बताने पर परम आनन्द पाया है
लगा कर प्रेम का आसन जो प्र चरणों को ध्याता है करे स्नान संगम के गति देवों की पाता है
यहीं था मंत्र शंकर ने गौरी को सुनाया है अमल में लानेपर जिसकौ सुआ सुकदेव कहाया है
है सिथ्या सत्य या दोनों भव-सागर कहाया है नेत्र भीतर के ज्यों खोले ओम दर्शन कराया है