ध्यान में अपने सदुगुरु के सदा डूबी रहूँ प्रभु मैं।
गुरु अपने की भक्ति में सदा रमती रहूँ प्रभु मैं।। --- टेक
तुम्हारी कृपा से प्रभुवर गुरु ने मुझको अपनाया।
दिया है बोध हृदय को गुरु ब्रह्मरूप दर्शाया।।
गुरु सच्चे पिता होते न भुलूँ यह प्रभुजी मैं। --- १
पिता तुम हो तुम्हीं माता सखा तुम ही मेरे भ्राता।
जगत के झूठेँ हैं नाते न कोई साथ में जाता।।
तुम्हीं से है असल नाता याद रक्खूँ प्रभुजी मैं। --- २
न जप तप ध्यान जानूँ मैं गुरो पकड़ा है चरणों को।
जो रहता मैं कपूत तेरा आँच आती तेरे यश को।।
सार्थक पद करो अपना सदा तुममें रमूँ प्रभु मैं। --- ३
विकारों की मलिनता से यह मन मेरा बड़ा मैला।
करते गन्दे बच्चों से भी ना नफरत पिता माता।।
निभाओ पितृपद अपना करूँ विनती प्रभूजी मैं। --- ४
कभी जब ध्यान में बैठूँ सदा आओ मेरे गुरुवर।
बचा लो माया से अपनी नहला दो प्रेम से प्रभुवर।।
आह्लादित मन मेरा कर दो सदा देखूँ तुम्हीं को मैं। --- ५