लगा था एक दिन सिद्ध गुफा दरबार बेठे थे वहाँ पर पूर्ण जगत आधार तीन लोक के नाथ विराजे हो रही थी भीड अपार
योग मार्ग का भेद बता कर तत्व ज्ञान का बोध करा कर सकल सृष्टि का द्रदय दिखाकर सिल रहा अलख अलोकिक सार
भक्त लोग पूजन को आतुर स्त्री. पुरुष सभी है चातुर मनोभाव से सब ही कातुर श्रद्धा की है भरमार
क्या मानव का अनुमान लगाए सिद्ध गन्धवं सभी यहाँ आए सुर गण सहित मुनौद्वर आए प्रभु दर्शन को लम्बी लगी है कतार लगा था एक दिन
ऐसा मनोरम द्रइ्य बना था महा कुम्भ भी लघु लगता था जनम दिवस का पत्र पड़ा था हो रही कृपा दृष्टि बौछार लगा था एक दिन
भक्तों के करुणा क्रनदन से द्रवित हुए स्वामी तन मन से उदित हुए अपने आसन से सवकों रहे दर निहार लगा था एक दित
तुजा उठाकर करो प्रतिज्ञा करना नहीं ठुम कोई अवज्ञा प्रभु चरणों की करो प्रतिष्ठा कर दूंगा सबका बेड़ा पार लगा था एक दिन
अभयदान गुरुवर ने दौन्हा मन संन्ताप सभी हर लोन्हा शीश नवाय नमन संव कीन्हों हो रही जज कार लगा था एक दिन