सदगूरू चरण कमल बलिहार रमा हआ है एक-एक स्वाँस में श्री सदगरू का प्यार
जितने रिस्ते नाते जग में सबने दिया बिसार कारण रहित कृपा तुम करते कोई नहीं उनिहार
इन्द्य दपन आप करवाया हर लिए हृदय विकार योग ध्यान जप तप करवाकर दिया दिव्य इजिहार
योगामृत की दिव्य सुधा को बाँटा बारम्बार शरणगत को वांह पकडली किया न भेद विचार
पापी से भी पापी बढ़कर आया शरण तुम्हार ज स्वभाव उतारा उसको भव सागर से पार
भी प्रभो अधर में लटको करियों मतौ अवार नाथ तुम्हारों कछू न बिगडे मेरो बेडा
तप दोष मेरो मति गिनियो अवगण भरे हजार मरा तेरो क्या बंटवारो एक नदी एक धार