बन्दऊ चरण कमल सुखरासी सदगुरू चरण कमल अधिनाशी
थी चरणों का सुमिरन करले जाप ध्यान का सेवन करते रहें ने कोई तप न्बाकी
स्थिर मन से चित्त लगाछे प्रभ जी को हृदय बीच बठाले क्यो जाय मथुरा काशी
जिनको ध्यावन से भव तरने मोक्ष सदन की सीढ़ी चढ़ले गये न पड़े जम फांसी
चरण कमन,रज झोलो भरले उर भिलायआलिंगन करते होय न जगत में हाँसी
घरती गगन बीच आय जनम ले सत संगतक्ंकर चरण शरण ले वन जा मुक्ति अभिलाषी
गशि भेट कर सदगुरू पाले योग सुधा का भोग लगाले फिर कबहूं नहिं नासी