प्रभु जी जब में बैठू ध्यान सतावे मन में इन्द्रिय मोय अचक-अचक आकर्षित करके मोठे सपन मोहि दर्शित करके बहुत लभावे भोहि
देखि-देखि इनकी चतुराई मेरी अब नहीं पार वसाई अपु चंचल और मोहि चलावे कहाँ बताऊ तौइ
एक होय तो करन लड़ाई तन मन से जे जाय नियराइ पाँच-पाँच मिल जोर लगावे कंसेऊ पार न होइ
इनके ऊपर मन की ढ्िढाई ताई सों जेगई बोराई आपु तो चाखे स्वाद व्यसन के नाच नचावे मोहि
तीन लोक तेरी ठकुराई कोई नहीं जो तोपे करे चढ़ाई रोय-रोय बालक तोय बुलावे कहाँ गयो है सोय
तुम समरथ गुरु देव गुसाई मेरी वार क्यों देर लगाई तुमको तो कछू फरक न आते क्यों भटकाओ मोय