जगत में प्रभुजी रोशन है नाम तुम्हारा तीन लोक चौदह भुवनों में चमके तेज तुम्हारा
पूर्ण बृह्मा परमेश्वर तुम हो अखिल विद्व के पालक हो प्रकृति परस्पर जो कुछ होता उसके तुम संचालक हो पाँच तर्व और सात धातु पर है अधिकार तुम्हारा
वड़े-बड़े महाराज महीपत्ति भुकुटि भ्रग से डरते हैं देव और दिग्पाल आपकी आज्ञा पालन करते हैं टाल सके जो हुकम तुम्हारा हमने नहीं निहारा
योगी जती तपस्वी सबके मन में बनते ध्यान तुम्ही कम काण्ड की पूजा तुम हो वेद शास्त्र का ज्ञान तुम्ही बाणी नहीं किसी की देखी वर्णन करे तुम्हारा
इस विशाल अवनी मण्डल पर सवाई धाम अपनाया परित्राण भक्तों का करने सद्गुरु रूप बनाया सिद्ध योग सा सरल मार्ग प्रभु है वरदान तुम्हारा
माली छुनता फूल जिस तरह गुलशन लगी कतार से निज बच्चों को आप खीचते भीड़ भरे संसार से शक्तिपाल फिर उनपर करते होता अजब नजारा
हे सिद्धों के सरताज आपसे अनुनय विनय हमारी पतला छूट न जाय आपका छाया रहे तुम्हारी वांह पकडना मेरी गुरुंबर देना सदा सहारा