राधा तैने बहुत हो नाच नचायों
अधिक कौतुकी कत्तंब तेरे मोहि लक्षन नहि भायो राघा रमण नाम मेरी धरि दियो जग बदनाम करायों
तीन लोक के हर पहलू पर तैनेहि रास रचायो ऐसो जीब कोई नहिं पायो जो तू नहिं भरमायो
गिन-गिन मारे मेरे भक्तन कल नेक तरस नहिखायो सुख में सुख और पठ रस व्यंजन मग निमुखन पकडायो
जो निश दिन ध्यान भजन में रहता भोजन को तरसायो तन को वस्त्र पेट को भोजन उनकों क्यो न थमायो
हटकन बरजन तू नहि माने में तोसे तोमायो मैं तो रहूं क्षीर सागर में तोरो पतो न पायो
मोहि छोडि तू घर-घर घूमे लाज शरम नहिं आयो अब तू ही मोक सभझाइये कैसे करन निभायो