यादगारी में सद्गुरु मेरे हम सफर मग में आँखे हमेशा विछाते रहे
चाह थी राह पायी नहीं मुस्तकिल वेकरारी में जीवन बिताते रहे यो ही गुमराह फिरते रहे दर वबदर फूटी किस्मत पे आँसू बहाते रहे
दीखा कोई नहीं तेरा लख्ते जिगर यो ही वेकार सिर को झुकाते रहे बडी मुश्किल से दौदार तेरा हुआ अश्रु खुशियों के अबतों बहाते रहे
आज से योग विधि से करें ध्यान हम श्रद्धा हर वक्त दिल में बढ़ाते रहे हूं दयानिधि कृपा तरी हो इस कदर चित्त चरणों में तेरे लगाते रहे
स्वांस अन्तिम चले प्राण तन को तजे फिर भी दर्दन तुम्हारा ही पाते रहे हो वहां जन्म गुरुवर जहाँ आप हे ऐसे अवसर हमेशा ही आते रहे