प्रभु चरनन में शीश झकाले श्री गुरूदेव चरन पंकज को मात्र सहारा बनाले
जनम जनम के भटके साथी गुरुविनु अब तक अटके साथी भव सागर के ये ही नइया ये नइया यही है खिवइया इनको ही शरण बनाले
मेरे प्र करुणा सागर है आनन्दकन्द दया सागर विश्व रचइया विश्वम्भर है योग प्रणेता योगेश्वर यह भाव सन में जमाले
केवल अज अव्यय अविनाशी अद्य चिदू घन आनन्द राशी त्रियुणातीत अकथ प्रभु पावन व्यक्त स्वरूप सहज मन भावन प्रभु का ध्यान लगाले
जायु कपा ध्रव ध्रूव-पद पायो गणिका गीध परमगति पायो सुनिरत जाहि छनहूँ अनजाने टूटट भव के ताने बाते