गुरुदेव के सिवा अब कोई रहीं हमारा चरणों में गिरा हूँ इक तेरा ही सहांरा
भटका अनन्त युग तक भव सिन्धु की भँवर में कब से रहीं लुढ़कता अज्ञान की लहर में हुढ़ा बहुत मिला पर कोई नहीं किनारा
ज्ञानांभिमान मेरा जड़ से मिटा दो भगवान सब तक शक्ति हर लो श्रद्धा से भर दो भगवान जिससे नहीं सताये विषयों के विष की धारा
पर्टार॒पु हमारे मन के हमको सता रहे हैं प्रारन्धघ भोग साधन में विघ्न ला रहे हैं अपना लो मुझको गुरुवर बन जाऊँ मैं तुम्हारा
आनन्दकन्द करुणानिधि सद्गुरो हमारे सुखधाम भक्तवत्सल स्वेस्व तम हमारे भवचक्र से छुड़ा दो बस आपका सहारा