हे गुरो हे प्रभो सदगुरो हमारे दुनियाँ में एक नाथ तुम्हीं हो हमारे
सत्ूचित् आनन्दरूप तुम्हीं हो महेश अखिल विश्व भ्राता प्रभ्नु तुम्हीं हो रमेश जन जन के श्राता कहाते हो तुम
भवतों को मारग दिखाते हो तुम तेरे सिवा नाथ कहो किसे हम पुकारें नइया मझधार में है लगा दो किनारे
शबरीं का जुठा फल तुमने ही खाया तुमने जाटायु को निज पद दिलाया तुमने ही गौतम की नारी को तारा
तुमने ही गणिका अजामिल को तारा निज जन की भीर पीर हरन करन हारे सद्गरू के रूप में प्रभु भा गये हमारे
मधुबन में गउओं को तुमने चराया तुमने ही सखियों संग रास रचाया तुमने द्रपदजा की लाज बचायी
तुमने ही अजुन को गीता सुनायी जैसे थे गज को तुम ग्राह से उबारे वैसे ही विपदा सब हरलों हमारे