है दयालु दौनबन्यु कब दया दिखाओगे जग के जंगलों के पार कब मुझे लगाओगे
मेरे सम अनाथ कौन» तुम सा नाथ है कहां तसा है भिखारी कौन तुम सा दानि है कहाँ तन अनाथ-नाथ मेरी दीनता सिटाओगे
मे अपार शक्ति-सिन्थु मैं अशक्त दीन हूँ मा अनन्त थुद्ध बुद्ध मैं प्रबोध हीन हूँ क्रव प्रभो जनम-मरण के चक़ से छुड़ाओगे
ज्ञानहीन भक्ति हीन पुण्य से विहीन हूँ पाप पंक से सना महान बुद्धिहीन हैं फिर भी नाथ सुझको अपना दास कब बनाओंगे
अवोध शिषु हूँ एक तुम हमारी माता हो मिं विलख रहा हूँ प्रभु जी तुम ही एक त्राता हो कैव दयाद्र हो के मुझको सीने से लगाओगे
हे दयालु दीनबंधु कब दया दिखाओगे जग के जंगलों के पार कब मुझे लगाओगे मेरे सम अनाथ कौन तुम सा नाथ है कहाँ मुझसा है भिखारी कौन तुम सा दानी है कहाँ कब अनाथ नाथ मेरी दीनता मिटाओगे
तुम अपार शक्ति सिंधु मैं अशक्त दीन हूँ तुम अनंत शुद्ध बुद्ध मैं प्रबोध हीन हूँ कब प्रभो जनम मरण के चक्र से छुड़ाओगे
ज्ञानहीन भक्तिहीन पुण्य से विहीन हूँ पाप पंक से सना महान बुद्धिहीन हूँ फिर भी नाथ मुझको अपना दास कब बनाओगे
मैं अबोध शिशु हूँ एक तुम हमारी माता हो मैं बिलख रहा हूँ प्रभुजी तुम ही एक त्राता हो कब दयार्द हो के मुझको सीने से लगाओगे हे दयालु दीन बंधु कब दया दिखाओगे