असता लाग शी म्हारे गुरू चाली दूर
जबू से धूल चूही मस्तम्ना ये दूषिक्षा से गई दूर,
तब में धूल चही मस्तान पर, दुविधा हो गई दर । इटाला नरंगच्या पान भारत है, पुरती पहुंची दूर ।।
सस्तक
गहू संसार बिहान की चाटी, निनाखत बिरला झार । प्यो शक्ति गुरु चन्द्र गौटन'ल ल्यारो, करी प्रभुजी भरपूर ।।
मस्तष्ण