ताही ते आयों प्रभ्नु कीं शरण में
तुम योगेश्वर करुणा सागर सब सुख तुम्हरे चरण भ्षें में मतिमन्द रहित सब गुण तें समरथ नाहि जतन में ज्ञान विराग भजन नहिं अपने गरब रहत अति तन में काम क्रोध लोभादि श्रस्त नित कलुष भरो मेरे मन में अगनित पापी जग के सारे तारि सकहू इक छन में तुम सम करुण वरुणालय प्रभु नाहिन कोउ त्रिभ्वुवन में
ताही ते आयों प्रभु की शरण में तुम योगेश्वर करुणा सागर सब सुख तुम्हरे चरण में मैं मतिमंद रहित सब गुण ते समरथ नाहीं जतन में ज्ञान विराग भजन नहिं अपने गरब रहत अति तन में काम क्रोध लोभादि ग्रस्त नित कलुष भरो मेरे मन में अगणित पापी जग के सारे तारि सकहुँ इक छन में तुम सम करुणा वरुणालय प्रभु नाहिंन कोउ त्रिभुवन में