जिन्होंने अन मार लियारे मैं तो उन संतो की दास
आपण गार जगत में बैटे नही निगी से लाग अन्गे तो कोई अनार व्यौना मत कहो चाहे राम, ए जिन्होंने मन
भन्न गारा तन बस में किया सबभाग भरो है दूर झूमे नही, अन्तर बरसे दूर ॥
तो कुरा जिन्होंने अन
गुरु नाम, छोड़ा जगत मोह हमलो सतगुरु ऐसे जिन्होने अन मिल गये सहज ही मुक्ति होय
मुसा पीया गुरु
शाक्तों, तो कुत्र सतगुरु स्वाग्री, दिया अमीरस प्याय जिन्होने मन मिल कहा करे यगराय ।।
जिन्होंने मुझे शरण लिया है मैं उन सन्तो दास