गुरुदेव की महिमा का कोई पार अभी तक पा न सका जज अनन्त अप्युत अव्यय कंबल अविनाशी है नहा सगुण साकार सदा शिव हिसगिरि वासी है
ना श्रमु का लाला का अब तक कोई भेद न जान सका गुरुचरणा में शिव चविरंचि सब धीश झकाते थुक सनकादिक ऋषिगण शीश झकाते हैं गुरु के पश्वया का कोई गान अभी तक गा न सका
ब्रह्म धर मनुज रूप हम सबके बीच में आये हैं पतितों पर करुणा करने ही करुण रूप बन आये हैं नई का इस माया को अब तक न कोई पहचान सका
गुरुदेव की महिमा का कोई पार अभी तक पा न सका अज अनंत अच्युत अव्यय केवल अविनाशी है वही सगुण साकार सदाशिव हिमगिरि वासी है
श्री प्रभु की लीला का अब तक कोई भेद न जान सका गुरु चरणों में शिव विरंचि सब शीश झुकाते हैं नारद शुक सनकादिक ऋषिगण शीश झुकाते है
गुरु के ऐश्वर्यों का कोई गान अभी तक गा न सका वही ब्रह्म धर मनुज रूप हम सबके बीच में आये हैं पतितों पर करुणा करने ही करुण रूप बन आये हैं प्रभु की इस माया को अब तक न कोई पहचान सका