वही जग में है बड़भागी जो गुरु-चरणानुरागी है।
धरा पर धन्य वह नर है जो हरि-चरणानुरागी है।।
हुआ आकार मानव का तो क्या?यदि हरि विमुख हम हैं।
वही मानव सुमानव है जो हरि-चर्चानुरागी है।।
वही माता सुमाता है जो सुत को भक्ति सिखलावे।
उसी की माँ है पुत्रवती जो गुरु-सेवानुरागी है।।
वही ज्ञानी है योगी है वही है सिद्ध भूतल पर।
वही कुदरत का मालिक है जो गुरु-ध्यानानुरागी है।।