तर्ज - श्याम चूड़ी बेचने आया
प्रसंग एक बार भक्त वत्सल भगवान श्री कृष्ण महाराज से मनोविनोद के मध्य परम भक्त एवं प्रिय सखा अर्जुन महाराज ने पूछा कि हे मित्र क्या आपने कभी छल कपट किया क्या आपसें कभी आवेश आया क्या आपको कभी आश्चर्य हुआ क्या आप पर क्रोध करने वाले पर थी आपने दया की क्या आप अपने किए कार्य पर कभी पछताए आदि इन प्रश्नों को सुन कर प्रभु मुस्काए और प्रत्येक प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया जो निम्नलिखित पंक्तिवद्ध है
न लीला धारी लीला सुनावे यू अद्भुत रूप बनावे अर्जुन खिल-खिल हषवि
जब भगतन पर दया दिखाई तब मोहिनी रूप बनाई देवन को अमृत छकाई छल कपट से बात बनाई पर छल कपट नहीं मोहे भावे
जब पिता ने प्रहलाद सताया जहर का प्याला पिलाया खौलते तेल में डलवाया फिर थम्ब गर्म तपाया इस मौके पर आवेश आवे
जब परीक्षा बली की ठानी तीन पग भूमि थी मांगी नहीं बली ने गुरु की मानी था राजा दिल से दानी मैंने कहते आश्चर्य आवे
जब मेरा रूप नारद ने चाहा मैंने हितकर मुखड़ा बनाया उसे उबाल क्रोध का आया मुझे श्राप में था लिपटाया उसकी गाली मुझे सुहावे
मैं सीता वियोग में रोया छा वाली रात नहीं सोया मेरा भगत मृग बन आया मुझे पिछ पिछे दोड़ाया वो मोक्ष की अर्ज लगावे
मारीची मुड़-मुड़ भागे आओ राम थोड़ी आगे मेरा सोया भाग अब जागै अब लागे तीर अब लागे परपन्चा छोड़ पछतावे