गोविन्द भज गोविन्द भज गोविन्द भज मन बावरे फिर बार बार मिले नहीं ऐसा तुझे शुभ दाव रे
मानुष का चोला पा गया फिर भी यह अवसर आ गया इसको भी जो तूं नशा गया फिर मेल आवै ना घाव रे
ये जग जुए का खेल है ना इन तिलों में तेल है संसार मिठठी जेल है मत जेल में दे पांव रे
फिर लख चौरासी भटकना उल्टे बदन से लटकना रो रो कर सिर पटकना मत छोड़ कर से लाभ रे
चोला मिला है कीमती मिलती इसी से सद्गति भजता तू क्यों ना श्रीपति तुलसी ना और उपाय रे