तर्ज - रुक जा ओ जाने वाली
राम नाम मोहे दीजियो कछु ना माँगू और सीता पति रघुनाथ जी तुम बिन और न ठौर
ले ले तूं सहारा प्यारे राम का राम बिना जीना किस काम का
भोलनी ने रघुवर से जब प्रेम बढ़ाया था बेरों का राम जी ने तब भोग लगाया था किया था दर्श प्यारे राम का
तुलसी ने मगन हो के इस नाम का जाप किया श्री राम के चरणों में श्रद्धा से ध्यान दिया किया था भरोसा प्यारे राम का
उस गीध जटायु का प्रभू मान बढ़ाते हैं और अपने हाथों से उसको सहलाते हैं किया था साधन प्रेम धाम का
बजरंग बली जी ने श्री राम से प्यार किया सौ योजन सागर को इक पल में पार किया करके भरोसा प्यारे राम का
केवटने राम जी को गंगा से पार किया इक्कीस कुलें तारी वों परम धाम गया धोया था चरण प्यारे राम का
जिसने प्रभुजी के चरणों से प्यार किया मस्तक ऊंचा गुरु का कुल को पार किया दीप जलता रहे अरमान का