ऐसा वर दे दो गुरुजी मेरा बेड़ा पार हो जयकारा लगाऊं आपका घर घर मगलाचार हो
होगा जब उद्धार मेरा उस दिन का इन्तजार है झंडा ऊँचा जग में तेरा मेरा भी सिद्ध काज है बरसाने जैसी होली होगी सिद्धेश्वर की जय-जयकार हो
कोई तुझको सर्व समर्थ कोई योगिराज कहता है मैं तो बस इतना ही बोलूँ पिता पुत्र का नाता है मुझको अपना शरण दे दो जहाँ प्रभु रामलाल हो
अज्ञानता है मुझमें ऐसे हैं आसमां में बादल जैसे दया की दृष्टि कर दो ऐसे नरसी भक्त पर की थी जैसे राम रति जैसी शक्ति दे दो जय जय गुरु देवा हो
बादल गरजे बिजली चमके अजब रूप निराला है कहीं पर्वत कहीं रेत के टीले कहीं पर सागर गहरा है कहीं फलों से बाग लदे हैं कहीं गुफा सजाए हो
आपके घर अन्धकार नहीं कोटि सूर्य उजाला है बाल न बांका कर सके जिसका तू रखवाला है आ जाए लहर शिवा में ये सर्व समर्थ्य महान हो
आप नहीं सुनोंगे दाता किसको अर्ज सुनाऊंगा अगर कभी रूठ गए तो चरण पकड़ मनाऊंँगा पानी पतला कौआ काला ये 'अधम' तुझे स्वीकार हो