अन्तकाले च सामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम य प्रयाति समदूृभाव याति नास्त्यत्र संशय
छोटी सी अर्जी मेरी योगेश्वर जी स्वीकार करो लाखों पापी तारे गुरुजी मेरा भी उद्धार करो
अन्त समय जब मेरा आए उत्तरायण अमृत बेला हो हृदय में गुरु मन्त्र आपका जबां पै जय गुरु देवा हो एक टकी से जब मैं निहारूँ मेरे सिर पै हाथ धरो
ध्यान तेरा करते करते तुझ में ही खो जाऊं मैं तेरी गोद में है सिद्धेश्वर छत फोड़ मर जाऊँ मैं जीवन के अनमोल सफर का ऐसा ही इन्तजाम करो
आँखों में देखूँ रूप तुम्हारा मुख में तुलसी पत्ता हो मिल जाए चरणोदक तेरा वो नील गंग की धारा हो रूप तुम्हारा मन में निहारँ इतनी तो मेहरबानी करो
गुरु नाम की चादर तन पै अन्तिम वस्त्र मेरा हो अन्तिम स्वर प्राणों से प्यारा जय जय गुरुदेवा हो पंच तत्व में मिले शरीरा वो धरती धाम नसीब करो
गुरुदेव को ना फर्क पड़े अर्जी ही खुदगर्जी है मेरी तो है इक यही अर्जी बाकी आपकी मर्जी है आ जाए लहर शिवा में 'अधम' अन्तिम प्रणाम कहो