तर्ज - रेशसी सलवार कुर्त्ता
गुरु चन्द्रमोहन का चोला मैंने ओढ़ लिया अपना जीवन श्री चरणों में जोड़ दिया
क्या शुभ कर्म कमाऊँ जो चरणों से लग जाऊँ धर्म की गठड़ी बनाऊं जो तेरे मन बस जाऊं कि मुझको अपना ही लिया
पतित पावन गुरुवर मेरे सोए भाग्य जगा दे ज्ञान दीप है योग द्वारे दीप से दीप जला दे कि उजाला कर ही दिया
एक बार जो दर्शन पाता वो आपका ही हो जाता ना कांशी मथुरा जाता तेरे दर पै डेरा जमाता कि दिव्य संस्कार दिया
एक अर्जी है गुरु जी मुझको दूर ना करना आप भी दूर ना जाना जब मुझको हो मरना कि 'अधम' डोरी सौंप दिया