शरीर है मरता-जीव अमर है गीता में यह ज्ञान दिया समर्पण कर दे प्रभू चरणों में गुरु जी ने उपदेश दिया
प्रारब्ध की यह कर्म भूमि संचित कर्म सुरक्षित है क्रियमाण सुधार ले लल्ला पुनरावर्ती निश्चित है अद्भुत है योगा शक्ति अर्जुन को जो ज्ञान मिला
राजस तामस तज कर सारे सींत्विक कर्म कमा ले रे राग द्वेष के चक्कर छड के प्रेम की ज्योति जगा ले रे अहं की होली जला के लल्ला स्वयं को स्वय का मित्र बना
संयभी बन कर ध्यान लगा ले ज्ञान यज्ञ से समाधी पाले स्वधर्म है परम धर्म परा धर्म तो भय फैला दे गुण ही गुणों में वर्त रहे हैं ऐसा है सृष्टि चक्र चला
देवी सम्पदा से आत्म शुद्धि विराट रूप के दृश्य पाएगा अनाशक्ति से कर नियत कर्म सांख्य योगी बन जाएगा इन्द्रीय दमन कर लें 'अधम' भ्रमित माया गुरु के सिवा